सत्य हिन्दू धर्म सभा :
हमारी हिन्दू पूजा :
दूर से नमस्कार और मनहि मन प्रार्थना यह भी हिन्दू की एक पूजा पद्धति है . यहाँ कहा है विदेशी ब्राह्मण एजेंट ?
लाखो , करोड़ हिन्दू रोज चलते हुवे मंदिरो में बैठे हिन्दू भगवानो को दूर से ही नमस्कार और मनहि मन प्रार्थना कर आगे बढ़ जाता है तब कहा है विदेशी ब्राह्मण एजेंट ? क्या ये नमस्कार और प्रार्थना पूजा नहीं है ? हिन्दू मनाता है ये पूजा ही है और फलदाई भी . ये सच है प्रार्थना और पूजा में किसी बिचोलिये की जरुरत नहीं .
हिन्दू अपना पिछवाड़ा खुद ही धोता है . क्या विदेशी ब्राह्मण बिचौलिया हमारी संडास धोने आएगा ? पंडित , ब्राह्मण पुजारी हमारी संडास साफ करने के लिए आएगा , बुला के डेस्कः लो . नहीं आएगा . क्या हिन्दू अपने निजी काम जो एक पुरुष अपने स्त्री के साथ बीतता है उसके लिए बिचोलिये विदेशी ब्राह्मण पंडित पुजारी को बुलाना पसंद करेंगे ? कभी नहीं . जब हमारी संडास साफ करने के लिए ब्राह्मण पुजारी नहीं आ सकता , जब हम अपने निजी काम करने के लिए विदेशी ब्राह्मण पुजारी को नहीं बुला सकते तो हमारी हिन्दू धर्म की पूजा के लिए विदेशी ब्राह्मण का भी कोई काम नहीं .
होसकता है जैसे हम कभी कभार ईरानी बेकरी का केक भी मंगाते है और खा लेते है वैसे ही कभी कभार कोई विदेशी ब्राह्मण हमारे हिन्दू समाज में विदेशी ब्राह्मण ने भी केक की तरह शिरकत की हो पर हम रोज रोज केक तो कहते नहीं . हम तो रोज अपने हाथ की अपने घर की दाल चावल , दाल रोटी ही कहते है . तो बात साफ है हमारी पूजा हम खुद ही करते है . न जाने हम दिन में कितनी बार भगवन को यद् करते है , मन ही मन प्रार्थन भी करते है अपने सुख , बल बचो के लिए दवा मांगे रहे है क्या ये पूजा और प्रार्थना नहीं . अगर ये प्रार्थना पूजा बिना ब्राह्मण की है तो क्या वर्थ , उसेलेस है ? नहीं न .
तो हमें विदेशी ब्रह्मिनो के हमारी और से पूजा करने की जरुरत नहीं . विदेशी ब्राह्मण तो अपने मन में खुद के लिए ही पराथना करेगा , हमारे लिए नहीं क्यों की वही उसका चरित्र है . वही उसकी फितरत है , वही उसका स्वाभाव है , वह तो हिन्दू और हिंदुस्तान का जन्मजात विरोधी है , शत्रु है , दुश्मन है वो हिन्दू भला कभी च ही नहीं सकता . विदेशी ब्राह्मण ने आज तक कोई भी काम हिन्दू के हित में नहीं किया है .
हमारे नॉन ब्राह्मण साधु , सैंटो ने , धर्मात्मा , महात्मावों ने हमें न्याय , नीट i , धर्म , अधर्म , हिन्दू धर्म अपने थोड़े और सटीक सब्दो में , दोहो में , अभंग में बताया है . कबीर का एक दोहा , रविदास का एक वचन , नामदेव का एक अभंग , तुकर्म का एक शुल्क ही काफी है धर्म ज्ञान के लिए . बस अपने सार्वजानिक और निजी जीवन में अपनी पूजा करते हुवे यही दोहे , यही अभंग बोल दीजिये , आपका भगवन खुस हो जायेगा , पूजा फलद्रुप होगी . मन को शांति मिलेगी क्यों की जो अपना है है , जो अपनी पूजा है वही सच्ची पूजा है . ब्रह्मिनो द्वारा की गयी जुटी और फरेबी .
यद् रखिये हिन्दू वही , जो ब्राह्मण नहीं
हिंदत्व वही , जिसमे ब्राह्मण बिलकुल नहीं .
नव . डी .डी .राउत ,
प्रचारक ,षड्स
आवर मैसेज तौ नेशन : जनेऊ छोडो , भारत जोड़ो
हमारी हिन्दू पूजा :
दूर से नमस्कार और मनहि मन प्रार्थना यह भी हिन्दू की एक पूजा पद्धति है . यहाँ कहा है विदेशी ब्राह्मण एजेंट ?
लाखो , करोड़ हिन्दू रोज चलते हुवे मंदिरो में बैठे हिन्दू भगवानो को दूर से ही नमस्कार और मनहि मन प्रार्थना कर आगे बढ़ जाता है तब कहा है विदेशी ब्राह्मण एजेंट ? क्या ये नमस्कार और प्रार्थना पूजा नहीं है ? हिन्दू मनाता है ये पूजा ही है और फलदाई भी . ये सच है प्रार्थना और पूजा में किसी बिचोलिये की जरुरत नहीं .
हिन्दू अपना पिछवाड़ा खुद ही धोता है . क्या विदेशी ब्राह्मण बिचौलिया हमारी संडास धोने आएगा ? पंडित , ब्राह्मण पुजारी हमारी संडास साफ करने के लिए आएगा , बुला के डेस्कः लो . नहीं आएगा . क्या हिन्दू अपने निजी काम जो एक पुरुष अपने स्त्री के साथ बीतता है उसके लिए बिचोलिये विदेशी ब्राह्मण पंडित पुजारी को बुलाना पसंद करेंगे ? कभी नहीं . जब हमारी संडास साफ करने के लिए ब्राह्मण पुजारी नहीं आ सकता , जब हम अपने निजी काम करने के लिए विदेशी ब्राह्मण पुजारी को नहीं बुला सकते तो हमारी हिन्दू धर्म की पूजा के लिए विदेशी ब्राह्मण का भी कोई काम नहीं .
होसकता है जैसे हम कभी कभार ईरानी बेकरी का केक भी मंगाते है और खा लेते है वैसे ही कभी कभार कोई विदेशी ब्राह्मण हमारे हिन्दू समाज में विदेशी ब्राह्मण ने भी केक की तरह शिरकत की हो पर हम रोज रोज केक तो कहते नहीं . हम तो रोज अपने हाथ की अपने घर की दाल चावल , दाल रोटी ही कहते है . तो बात साफ है हमारी पूजा हम खुद ही करते है . न जाने हम दिन में कितनी बार भगवन को यद् करते है , मन ही मन प्रार्थन भी करते है अपने सुख , बल बचो के लिए दवा मांगे रहे है क्या ये पूजा और प्रार्थना नहीं . अगर ये प्रार्थना पूजा बिना ब्राह्मण की है तो क्या वर्थ , उसेलेस है ? नहीं न .
तो हमें विदेशी ब्रह्मिनो के हमारी और से पूजा करने की जरुरत नहीं . विदेशी ब्राह्मण तो अपने मन में खुद के लिए ही पराथना करेगा , हमारे लिए नहीं क्यों की वही उसका चरित्र है . वही उसकी फितरत है , वही उसका स्वाभाव है , वह तो हिन्दू और हिंदुस्तान का जन्मजात विरोधी है , शत्रु है , दुश्मन है वो हिन्दू भला कभी च ही नहीं सकता . विदेशी ब्राह्मण ने आज तक कोई भी काम हिन्दू के हित में नहीं किया है .
हमारे नॉन ब्राह्मण साधु , सैंटो ने , धर्मात्मा , महात्मावों ने हमें न्याय , नीट i , धर्म , अधर्म , हिन्दू धर्म अपने थोड़े और सटीक सब्दो में , दोहो में , अभंग में बताया है . कबीर का एक दोहा , रविदास का एक वचन , नामदेव का एक अभंग , तुकर्म का एक शुल्क ही काफी है धर्म ज्ञान के लिए . बस अपने सार्वजानिक और निजी जीवन में अपनी पूजा करते हुवे यही दोहे , यही अभंग बोल दीजिये , आपका भगवन खुस हो जायेगा , पूजा फलद्रुप होगी . मन को शांति मिलेगी क्यों की जो अपना है है , जो अपनी पूजा है वही सच्ची पूजा है . ब्रह्मिनो द्वारा की गयी जुटी और फरेबी .
यद् रखिये हिन्दू वही , जो ब्राह्मण नहीं
हिंदत्व वही , जिसमे ब्राह्मण बिलकुल नहीं .
नव . डी .डी .राउत ,
प्रचारक ,षड्स
आवर मैसेज तौ नेशन : जनेऊ छोडो , भारत जोड़ो
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